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मध्य प्रदेश: प्रशासनिक आदेशों की उड़ी धज्जियाँ, प्रतिबंध के बावजूद सड़कों पर दौड़े ई-रिक्शा
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संक्षेप
मध्य प्रदेश: कानून तोड़ने के मामले में अगर किसी शहर को 'नंबर वन' का खिताब मिलना चाहिए, तो वो है हमारा इंदौर।
विस्तार
मध्य प्रदेश: कानून तोड़ने के मामले में अगर किसी शहर को 'नंबर वन' का खिताब मिलना चाहिए, तो वो है हमारा इंदौर। कल ही पुलिस-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने बड़े जोर-शोर से आदेश जारी किया था कि राजवाड़ा और उससे जुड़ी मुख्य सड़कों पर ई-रिक्शा की एंट्री पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेगी ताकि ऐतिहासिक क्षेत्र को जाम के जंजाल से मुक्ति मिल सके। मगर अफ़सोस! जिस आदेश की स्याही अभी ठीक से सूखी भी नहीं थी, आज दिन दहाड़े उसकी धज्जियां उड़ती दिखीं। इंदौर की सड़कों पर 'कानून का राज' नहीं, बल्कि 'तोड़ने की परंपरा' का राज चलता है, यह बात एक बार फिर साबित हो गई। सड़कों पर शान से फर्राटे भरते 'प्रतिबंधित' ई-रिक्शा। सुबह से लेकर शाम तक, प्रशासन के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए ई-रिक्शा चालक बेख़ौफ़ होकर राजवाड़ा से लेकर सराफा तक अपने मनचाहे रूट पर सवारी ढोते रहे। जहां एक ओर आम जनता भारी जाम और अव्यवस्था में झल्लाती रही, वहीं दूसरी ओर ई-रिक्शा चालकों ने मानो प्रशासन को खुली चुनौती दे रखी थी। नियम, आदेश, अनुशासन ये सब बातें इंदौर की ट्रैफिक हकीकत में बस 'किताबी थ्योरी' बनकर रह गई हैं। हकीकत यह है कि सड़क पर कोई सख्ती नहीं दिखी, यातायात पुलिस कहीं नदारद थी और नगर निगम की ओर से कोई कार्रवाई की गई ही नहीं। सबसे बड़ा सवाल प्रशासन की निष्क्रियता पर उठता है। ऐसा लगता है, जैसे अधिकारी आदेश जारी करके 'फाइलों' को शांत करा देते हैं, और सड़क पर 'अव्यवस्था' को खुला छोड़ देते हैं। प्रशासन मानो 'दूर से देख रहे हैं तमाशा' मोड में रहा। जब मुख्यमंत्री खुद राज्य के गृह मंत्री और इंदौर के प्रभारी भी हों, तब राजधानी से आया आदेश भी अगर इंदौर की गलियों में दम तोड़ दे, तो यह गंभीर प्रश्न खड़ा होता है: कानून की ‘गाड़ी’ आखिर चला कौन रहा है? इंदौर फिर साबित कर गया कि यहां आदेश की ताकत से ज्यादा बल फितरत का है, और वो फितरत है— नियम तोड़ने की! जब तक सख्त कार्रवाई नहीं होगी, इंदौर की यह 'तोड़ने की परंपरा' बदस्तूर जारी रहेगी। क्या शहर का 'नियम तोड़ो' स्वभाव प्रशासन की ढिलाई के सामने हमेशा भारी पड़ता रहेगा? यह सवाल ट्रैफिक जाम में फंसी जनता पूछ रही है।
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